आम चुनाव-2019 को अपवाद मान लें तो 2015 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से ही बीजेपी संकट में है, उसका जादू बेअसर हो रहा है। जनता ने भाजपा में विश्वास जताया, लेकिन उसकी अतिवादी नीतियां एवं व्यक्तिवादी राजनीति उसके लिये घातक सिद्ध हो रही है।
अरविन्द केजरीवाल दिल्ली में तीसरी बार शानदार एवं करिश्माई जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। वे सौम्य, चतुर व करिश्माई कर्मयोद्धा व्यक्तित्त्व के आम आदमी जैसे दिखने वाले राजनेता हैं। हो सकता है कि आज जब दिल्ली एक कठिन दौर से गुजर रही है, तब नियति अपना करिश्मा ऐसे ही सादे व्यक्तित्व वाले मुख्यमंत्री के माध्यम से दिखाना चाहती है। उधर दिल्ली की जनता ने इस बार विधानसभा चुनाव में जो जनादेश दिया है उसको सब अलगअलग रूप में देख रहे हैं।
समीक्षक अपने-अपने चश्मे के अनुसार विश्लेषण कर रहे हैं। पर एक बात स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई है कि संकुचित मानसिकता एवं साम्प्रदायिकता को दिल्ली की जनता ने सदैव की तरह इस बार भी स्वीकार नहीं किया।केजरीवाल शुरू से चाहते थे कि दिल्ली की जनता राष्ट्रीय मुद्दों को एक तरफ रखकर दिल्ली के मुद्दों पर वोट करे और अपनी इस रणनीति में वह कामयाब हुए और ऐतिहासिक तरह से जीते। लगता है केजरीवाल को मिला स्पष्ट बहुमत किसी नये ध्रुवीकरण संकेत दे रहा है। जो-जो मुद्दे सभी राजनैतिक दलों ने उठाये, वे मोटे रूप में चुनावी थे (चुनावी होते हैं)। अब सभी दलों को पूर्वाग्रह छोड़ देना चाहिए।अन्यथा देश की राजनीति बहुत दूर तक नहीं ले जा सकेंगेहमारा राष्ट्रीय जीवन विविधता की एक चुनरी है। उसके इस रूप को खूब ठंडे दिमाग से समझना होगा व सुरक्षित रखना होगा। अब तक का इतिहास बताता है कि देश की जनता ने एकदम बायां या एकदम दायां कभी स्वीकार नहीं किया। न नेता के रूप में न ही नीति के रूप में।
वर्तमान चुनावों का जनादेश भी यही दूरदर्शिता लिए हुए है। दिल्ली की आवाज दूर तक जाती है और इस बार भी जाएगी। केजरीवाल ने जो करिश्मा किया है, वह सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रह सकता। इसलिए कि उनके मुकाबले में अमित शाह खुद उतर आए, बीजेपी के नए अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने दिल्ली की गलियों की खाक छानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी रैलियों में उतरे। उसके बावजूद अगर बीजेपी की यह गत बनी है और उसकी करारी हार हुई है तो फिर इस आवाज के दूर तक जाने के कारण भी बनते हैं। लगता है केजरीवाल की जीत देश की राजनीति को एक नयी दिशा एवं नया धरातल देगी। आम सहमति केजरीवाल के चयन की ताकत बनी , जनता ने आपको वोट दिए हैं, आप एवं उसकी सरकार उसे विश्वास दें कि शांति, भाईचारे एवं विकास की आंधी नहीं तो हवा अवश्य चलेगी। जनता को लगे कि सरकार है तथा यह विश्वास पैदा करें कि, समस्याएं स्थिर हों, प्रशासन स्थिर हो। जनता की कठिनाइयों को राष्ट्रीय हित में खुले दिमाग से समझें। आम सहमति सिर्फ विधानसभा चुनाव में जीत प्राप्त करने तक ही न हो अपितु इस पर भी हो कि अब धर्म और जाति के आधार पर राजनीति नहीं चलनी चाहिए, दिल्ली का विकास होना चाहिए।
नहीं दिल्ली के जनादेश को स्थानीय नहीं माना जा सकता। इसका राष्ट्रीय राजनीति पर असर पड़ना स्वाभाविक है। भाजपा के लिये यह समय आत्ममंथन का समय है, राजनीति कभी भी एक दिशा में नहीं चलतीएक व्यक्ति का जादू भी स्थायी नहीं होता राजनीति में। परिवर्तन राजनीति का शाश्वत स्वभाव है। इस दिल्ली चुनाव से एक बात फिर से साफ हुई कि राज्यों के चुनावों में न तो मोदी मैजिक काम आ रहा है, न अमित शाह की रणनीति। आम चुनाव-2019 अपवाद मान लें तो 2015 के गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से बीजेपी संकट में है, उसका जादू बेअसर हो रहा है। कांग्रेस की नीतियों से परेशान देश की जनता ने भाजपा विश्वास जताया, लेकिन उसकी अतिवादी नीतियां एवं व्यक्तिवादी राजनीति उसके लिये घातक सिद्ध रही है। राष्ट्रीय मुद्दों के नाम पर स्थानीय मुद्दों एवं नेताओं की उपेक्षा के कारण ही उसे बार-बार हार देखना पड़ रहा है।
समूचे देश पर भगवा शासन अब सिमटता जा रहा हैगुजरात में पार्टी बड़ी मुश्किल जीती। कर्नाटक में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी तुरंत सरकार नहीं बना सकी।पंजाब, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़राजस्थान और झारखंड में पार्टी हार मिली। हरियाणा में वह अकेले सरकार नहीं बना पाई और महाराष्ट्र जीतकर भी सत्ता गंवा दी। अब दिल्ली उसके लिए नतीजे इतने खराब रहने विपक्ष का मनोबल बढ़ेगा। राष्ट्रीय स्तर पर इसका संदेश यह गया है कि मिली-जुली ताकत और सधी रणनीति भाजपा को चित किया जा सकता । मतलब यह कि जनता अब आंख मूंद कर भाजपा के हर मुद्दे को समर्थन नहीं दे रही। नरेन्द्र मोदी के अब कमजोर होने के संकेत मिलने लगे और लगातार मिल रहे हैं। मोदी दिल्ली में दो रैलियां कीं और शाहीनबाग मुद्दे को बहुत ही आक्रामक तरीके उठाया, लेकिन मतदाताओं उसका कोई असर नहीं पड़ा।दिल्ली नतीजों का व्यापक असर भाजपा लिये एक बड़ी चुनौती बनने वाला और इस चुनौती के असर से निपटना एक समस्या होगा। एक असर यह देखने को मिलेगा कि उसके सहयोगी दल अब उससे कड़ी सौदेबाजी कर सकते हैं। यह सबसे पहले बिहार देखने को मिलेगा।
वहां इस साल नवंबर में होने वाले चुनाव में जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार राज्य बीजेपी को कम सीटों पर मान जाने के लिए मजबूर करेंगे। दिल्ली के चुनाव ने यह भी साबित किया कि जनांदोलनों के जरिये चुनावी राजनीति में हस्तक्षेप किया जा सकता हैशाहीनबाग ने साबित किया कि धीरेधीरे एक अलग तरह का विपक्ष तैयार हो रहा है, एक नये तरह का जनादेश सामने आ रहा है। संभव है, राष्ट्रीय राजनीति के संदर्भ में अरविंद केजरीवाल के इर्द-गिर्द देश के विपक्ष की कोई गोलबंदी तैयार हो, समूची राष्ट्रीय राजनीति में केजरीवाल का मॉडल नये राजनीतिक समीकरण एवं गठबंधन का माध्यम बने। केजरीवाल ने जिस तरह विरोध की राजनीति बचते हुए विकास के अजेंडे को दोहराया, उसका व्यापक असर हुआउन्होंने जिस तरह से राजनीतिक प्रश्नों से किनारा किया और एक नये अंदाज में हिंदुत्व के पक्ष में खड़े हुए उससे भाजपा की काट संभव हुई है।
कोई बड़ी बात नहीं कि समूचा विपक्ष केजरीवाल मॉडल की छतरी के नीचे नया राजनीतिक गठबंधन बना लेजनता की तकलीफों के समाधान की नयी दिशाओं को उद्घाटित करते हुए विकास सभी स्तरों पर मार्गदर्शक बनेमापदण्ड बने, तभी देश की स्थिति नया भारत निर्मित करने का माध्यम होगी, तभी विदेश नीति प्रभावशाली होगी और तभी विश्व का सहयोग मिलेगा। इसके लिये जरूरी है कि हर पार्टी को अपनी कार्यशैली से देश के सम्मान और निजता के बीच समन्वय स्थापित करने की प्रभावी कोशिश करनी होगी, ताकि देश अपनी अस्मिता के साथ जीवंत हो सके।जहां तक कांग्रेस का सवाल है, लगता कि कांग्रेस ने खुद ही यह तय कर लिया था कि भाजपा को परास्त करने के लिये उसे इस दौड़ में आगे नहीं जाना।